जीने के बहाने
बहानोँ से चलती है जिँदगी।
पहली
अभिव्यक्तिसे चला सिलसिला-
अंतिम साँस पर ही
रूकता है।
बहुत ही वेराइटीज
है-
छोटे, बडे,गंभीर, चुटकीले,
हर रंग ,हर रस
में सराबोर।
बस जरुरत है इनोवेटीव रहने की।
कंटेपररी रहने की।
बहुत से बहाने-
आउट आँफ डेट हो
जाते हैं ।
पर कुछ तो कौए की
जीभ खाये आते हैं ।
अच्छी,बुरी,आडी,तिरछी
सीधी,टेढी हर
दृष्टि के बहाने।
बहाने ही बहाने।
घर देर से आने के
बहाने,
काँलेज न जाने के
बहाने,
थियेटर में पापा
के मिलने पर किये बहाने,
भाई की फ़ीस खो
जाने के बहाने।
बडे ही मजेदार हैं बहाने।
रिश्तों को न
मानने के बहाने,
घूस खाने के
बहाने,
लंबी क्यू में
जबरदस्ती आगे लगने के बहाने,
बस में टिकट न
लेने के बहाने,
काम न करने के
बहाने।
बडे ही अनोखे हैं बहाने।
इन बहानों में उलझा इंसान,
जीवन को जीने के बहाने-
जब ढूंढ नहीं पाता।
कोई भी इनोवेशन तब काम नहीं
आता।
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