Tuesday, December 23, 2014


जीने के बहाने
बहानोँ से चलती है जिँदगी।
पहली अभिव्यक्तिसे चला सिलसिला-
अंतिम साँस पर ही रूकता है।
बहुत ही वेराइटीज है-
छोटे, बडे,गंभीर, चुटकीले,
हर रंग ,हर रस में  सराबोर।
   बस जरुरत है इनोवेटीव रहने की।
   कंटेपररी रहने की।
बहुत से बहाने-
आउट आँफ डेट हो जाते हैं ।
पर कुछ तो कौए की जीभ खाये आते हैं ।
अच्छी,बुरी,आडी,तिरछी
सीधी,टेढी हर दृष्टि के बहाने।
  बहाने ही बहाने।
घर देर से आने के बहाने,
काँलेज न जाने के बहाने,
थियेटर में पापा के मिलने पर किये बहाने,
भाई की फ़ीस खो जाने के बहाने।
   बडे ही मजेदार हैं बहाने।
रिश्तों को न मानने के बहाने,
घूस खाने के बहाने,
लंबी क्यू में जबरदस्ती आगे लगने के बहाने,
बस में टिकट न लेने के बहाने,
काम न करने के बहाने।
  बडे ही अनोखे हैं बहाने।
  इन बहानों में उलझा इंसान,
जीवन को जीने के बहाने-
जब ढूंढ नहीं पाता।
कोई भी इनोवेशन तब काम नहीं आता।


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