
ब्लैकहोल
जब भी सोचती हूँ ,
कि कुछ लिखूँ-तुम्हारे बारे में ,
तो शब्द ही नहीं मिलते।
भला इतनी विरक्ति-
क्या शब्द थाम पायेंगे !
तब भी जब बैठती हूँ –
तो याद ही नहीं रहती।
क्या लिखूँ?
दिल,दिमाग सब पर शून्य!
तुम्हारे लिए कैसी कंगाली है?
न शब्द
न भावना
न याद
यहाँ तक कि शिकायत भी नहीं !