Tuesday, December 23, 2014


हर साल बर्बाद किये देशों में इजाफा होता गया !
और हम सब चुपचाप बैठे रहे |
इंतजार था हमें-दानव का!
के इससे ही दोस्ती कर लें-बच जायेंगे|
पर क्या,
इंसान को भट्टी में झोंकते दानव,
इनका मतलब समझते हैं ?
अजीब लगता है-
जब सोचती हूं-कैसे लोग होंगे वहां |
क्या हमारे जैसे ही-बेबस
जो अपने सर हजारों खून का बोझ ढोने पर मजबूर हैं|
या पूरी नस्ल ही,
उस घास की तरह है-जिसने यदुवंश का नाश किया!
और ये-
पूरी इंसानियत को खत्म करेंगे|
देखती हूं-के हम सब डरे हैं|
दानव कहता है-मैं तुम्हारा नेता हूं|
कोइ साथ नहीं देता,
पर विरोध का स्वर भी  नहीं है|
क्या पूरी इंसानियत इस तरह-

इस जलील, कायरता पूणं
मौत मरेगी !

No comments:

Post a Comment