ज़ुदा रास्ते
मेरी बातें
तुम्हारी जैसी नहीं ,
ना सरल,न सीधी,
ये सपाट हैं ।
ना इसमें समुद्र
की गहराई है,
ना पर्वतों सी
ऊँचाई ।
यह समुद्र पर
फैली-
तेल की धार है।
मुझे विष-अमृत
का,
घोल बनाना नहीं आता।
मैं उसे वैसे ही
पेश करती हूँ –अल्हदा।
नहीं जानती
शब्दों के जाल में –
अर्थ को घुसाते,छिपाते- तुमने की ईमानदारी
या
अप्रिय सत्य का ज़खीरा पटकते-मैंने।
मुझे बस इतना पता है-चाहना एक ही है।
बस तुम जरा हाथ को घूमाकर नाक पकड्ते हो-
मैं सीधे गर्दन।
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