अग्निशिखा
मैं जड़ हूँ –
सौंदर्य ,गंध से
हीन।
मैं तुम्हारी
इच्छा पुष्प नहीं ,
ना जूही की कली।
मैं तुम्हारे
ह्र्दय पर थिरकती मुस्कान हूँ ।
मैं तुम्हारे
रस-स्वप्न की-
स्वर्ण मूर्ति का
आलिंगन नही ।
मैं तुम्हारी
रगों में –बहता ज्वाल हूँ ।
मैं तुम्हारी
तृषा को पूर्ण करती राह नही –
खींच ले जाये जो
अगम को –मैं वो चित्कार हूँ ।
मैं तुम्हारे गात
को शीतल करती पय-धार नहीं ,
श्रुति मात्र से
जल उठो- मैं वो भ्रष्ट राग हूँ ।
मैं जड़ हूँ –
सौंदर्य ,गंध से
हीन।
मैं तुम्हारी
इच्छा पुष्प नहीं ,
ना जूही की कली।
मैं तुम्हारे विश्वाश पर चोट करती-क्रांति उदगार हूँ ।
No comments:
Post a Comment