हम क्या कहें !
तुम तो हमें सिरे
से ही नकार जाते हो।
एक बार नहीं
,हजार बार –
हम तुम्हारी कठोर
दहलीज रक्तस्नात कर जाते हैं ।
क्या तुम जानते
हो?
तुम्हारे चाबुक से उधडी,
हमारी लाशों से भरे पडे हैं ।
और जब तुम-
हम अर्धमृत लाशों पर,
अपने रथ पे सवार –
सैर को निकलते हो,
तुम्हारे रथ के पहिए
हमारे खून से ही चमकते हैं ।
और तुम कहते हो,
कि हम अब भी कुछ कहें ।
बस कहें ! बस कहें ही।
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