क्या क्रांति सिर्फ इसीलिए रूकी रहेगी
कि हमने गलत प्रतीकों को चुना!
सुना था जब जमीन पकती है
तब आती है क्रांति!
कैसे पकती है ये जमीन?
माथे पर पडने वाली परेशानी के सलवटों से,
पेट में घटते अनाज से,
ईमान पर चिपके खटमलों से!
इनसे ही तो पकती थी जमीन !
फिर आज क्या हुआ?
तो क्या क्रांति संकेतों के इंतजार में,
कसिी अंधेरी खोह में दुबकी रहेगी ?
कि हमने गलत प्रतीकों को चुना!
सुना था जब जमीन पकती है
तब आती है क्रांति!
कैसे पकती है ये जमीन?
माथे पर पडने वाली परेशानी के सलवटों से,
पेट में घटते अनाज से,
ईमान पर चिपके खटमलों से!
इनसे ही तो पकती थी जमीन !
फिर आज क्या हुआ?
तो क्या क्रांति संकेतों के इंतजार में,
कसिी अंधेरी खोह में दुबकी रहेगी ?