राख में दबे शोलों की
सरगोशी,
ज्वालामुखी से निकली लपटों से भी तेज़ है।
मैं उनमें कंडे डाल कर-
सेंकती हूँ ह्रदय और
आत्मा।
सेंकती हूँ रोटियाँ –जली-जली।
दबी बातें,
सिर्फ विस्फोट ही करती
हैं ।
चिनगारी चाहे लाख दबी हो,
किसी चूल्हे की आग नहीं
बनती।
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