Sunday, July 11, 2010

हम क्या कहें !






हम क्या कहें !
तुम तो हमें सिरे से ही नकार जाते हो।
एक बार नहीं ,हजार बार –
हम तुम्हारी कठोर दहलीज रक्तस्नात कर जाते हैं ।
क्या तुम जानते हो?
हम से तुम्हारि दहलीज तक के रास्ते-
तुम्हारे चाबुक से उधडी,
हमारी लाशों से भरे पडे हैं ।
और जब तुम-
हम अर्धमृत लाशों पर,
अपने रथ पे सवार –
सैर को निकलते हो,
तुम्हारे रथ के पहिए
हमारे खून से ही चमकते हैं ।
और तुम कहते हो,
कि हम अब भी कुछ कहें ।बस कहें ! बस कहें ही!

1 comment:

  1. कहने से आगे तो करना पड़ेगा, और उसी को तो साम्यवाद कहते हैं। सामयवादी हुए तो जीवन के सब संदर्भ ही छुड़ा दिए जाएँगे। अब तो बाजार ही किस्मत है, फ़िर बीच बाजार में साम्यवादी राग क्यों?

    ReplyDelete