Sunday, July 11, 2010

ब्लैकहोल






ब्लैकहोल

जब भी सोचती हूँ ,

कि कुछ लिखूँ-तुम्हारे बारे में ,

तो शब्द ही नहीं मिलते।

भला इतनी विरक्ति-

क्या शब्द थाम पायेंगे !

तब भी जब बैठती हूँ –

तो याद ही नहीं रहती।

क्या लिखूँ?

दिल,दिमाग सब पर शून्य!

तुम्हारे लिए कैसी कंगाली है?

न शब्द

न भावना

न याद

यहाँ तक कि शिकायत भी नहीं !

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