घुमन्तू। हम सब - लगाते हुए बोलियाँ, पसार कर बैठते हैं शब्द; बहुत कुछ है जो अंधेरों में होता है, पर कुछ है जो होता है, सरे आम- बीच बाज़ार।
राख में दबे शोलों की सरगोशी,
ज्वालामुखी से निकले लपटों से भी तेज़ है।
मैं उनमें कंडे डाल कर-
सेंकती हूँ ह्रदय और आत्मा।
सेंकती हूँ रोटियाँ –जली-जली।
दबी बातें,
सिर्फ विस्फोट ही करती हैं ।
चिनगारी चाहे लाख दबी हो,
किसी चूल्हे की आग नहीं बनती।
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